#रुबाइयाँ
उपवन से नित फूल तोड़कर , ज़ुल्फ़ों में तो सजा लीजिए।
बेताब मिलन को हुये सनम , मुलाकात का मज़ा लीजिए।।
चार दिनों का यौवन अपना , दूर नज़र से क्यों जाएँ।
प्रेम भरा है उर प्यालों में , दोनों का मन रज़ा लीजिए।।
उपहार प्यार का लाया हूँ , देकर तुमको जाऊँगा।
प्यार भरा है दिल में कितना , तुमको आज दिखाऊँगा।।
क़समें वादे सच्चे होंगे , रूही प्यार किया मैंने;
ज़ज्बातों की करूँ इबादत , ऐसा दिल ही चाहूँगा।।
समझौता प्यार नहीं होता , ये रूहों का मिलना है।
दिल के गुलशन में गुल बनके , अरमानों का खिलना है।।
गुल महक बिखेरा करते हैं , सबका मन ये हरते हैं;
नाते वो होते हैं जिनको , मनहर कर नित चलना है।।
#आर.एस.’प्रीतम