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5 Dec 2018 · 1 min read

ग़ज़ल/दाग़ ए जुदाई

हम जो तन्हाई में रो लें तो कम
दाग ए रूसवाई धो लें तो कम

उनकी चाह में खंडहर हो जाएं
मरजाने फिदाई हो लें तो कम

बाम-ए-रफ़ाक़त वो कब समझेंगे
ख़िलवत-ए-ग़म जो बो लें तो कम

ये रोज़ रोज़ चश्म ए तर इस क़दर
गर दाग़ ए जुदाई जो लें तो कम

~अजय “अग्यार

1 Like · 262 Views
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