ग़ज़ल- दागदा दामन था जिसका, आज वो मशहूर है
दागदा दामन था जिसका, आज वो मशहूर है।
चाँद पर धब्बे बहुत हैं फिर भी वो पुरनूर है।।
आज के इस दौर में, खाने को तो भरपूर है।
आदमी आदम को खाने, क्यों हुआ मजबूर है।।
गुम हुआ बचपन हमारा, आज के इस दौर में।
है बड़ा औहदा मगर, वो बचपना क्यों दूर है।।
खो गई इंसानियत अब, लुट रही अस्मत यहाँ।
निर्वसन इंसा से बेहतर, आज भी लँगूर है।।
‘कल्प’ कलयुग आ गया अब, पाप बन कर छा गया।
मन हुआ बेनूर तो कपड़ों से तन पर नूर है।।
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