ग़ज़ल/तेरी आँखों में ख़ुशी चाहिए
हमें फ़कत अपनी ज़िन्दगी चाहिए
बस तू चाहिए तेरे सिवा कुछ नहीं चाहिए
कभी कभी ऐ रहबर तेरी शरारत चाहिए
थोड़ी थोड़ी सी ही सही मग़र तिश्नगी चाहिए
दूर रहके तू क़ुर्बत का एहसास दिलाया कर
हमें गर कुछ चाहिए, तेरी आँखों में ख़ुशी चाहिए
मौसम सर्द है बड़ा कि महीना दिसम्बर आ गया
दिसम्बर से जनवरी तक तेरी साँसों की गर्मी चाहिए
मेरी आशिक़ी में रंग भरना बस अब तेरा ही काम है
हम इश्क़ के मारों को क्या चाहिए बस आशिक़ी चाहिए
हमनें तुझे आदत बनाया फ़िर इबादत बना लिया
चाहें आशिक़ कहो या महबूब हमें,तेरी मौशिकी चाहिए
हम दर्द ए दिल कहना चाहते हैं ,कुछ बहना चाहते हैं
अब ना बेबसी चाहिए ना बन्दगी बस दीवानगी चाहिए
~अजय “अग्यार