ग़ज़ल/तू नहीं तो है भी क्या
इन आँखों में इक़ ख़्वाब के सिवा है भी क्या
तेरे ना होने से हम हैं कहाँ ,तू नहीं तो है भी क्या
इक़ दरख़्त पे शाख़ें भी हैं ,फूल भी हैं, बहारें भी
फ़िर भी परिन्दा है तन्हा, गुफ़्तुगू नहीं तो है भी क्या
तू हो तो मुस्करा लें हम ,तू हो तो गुनगुना भी लें
मिल भी जाए कोई, तेरे हु बा हु नहीं तो है भी क्या
ये सच है , हमनें हर अल्फाज़ तुझ पे लिक्खा है
लेके तेरी आरज़ू,वो आरज़ू आरज़ू रही तो है भी क्या
हमसे बेहतर वो ख़ुदा पढ़ता है सफ़े,हमारी वफ़ा के
ऐ जाने वफ़ा तेरी आँखों में ,जुगनू नहीं तो है भी क्या
~अजय “अग्यार