ग़ज़ल/तुझे याद करके लिक्खु तो ग़ज़ल बन जाती है
जानेमन मेरी हर मुश्किल कँवल बन जाती है
तुझे याद करके लिक्खु कुछ भी तो ग़ज़ल बन जाती है
हिरनी के जैसी हैं आँखें तेरी उनमें मधुशाला सी
तू नीले लिबास में आ जाए कभी तो बादल बन जाती है
अच्छा होता ग़र जो ताउम्र तू मैं साथ साथ होते
जाने क्यूं तेरे मेरे बीच ये दुनियाँ ख़लल बन जाती है
तू कुछ कश्मीर सी है कुछ कन्याकुमारी सी भी है
ओढ़ ले सफेद चुनर तो मेरी निगाहें पागल बन जाती हैं
~अजय “अग्यार