ग़ज़ल:- तीर नजरों से अपनी चलाते हो क्यों
सालिम:फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
(212 212 212 212 )
तीर नजरों से अपनी चलाते हो क्यों।
मेरे दिल को निशाना बनाते हो क्यों।।
फर्ज़ कहकर मदद मेरी करते रहे ।
अपने एहसां तले अब दबाते हो क्यों।।
दरबदर तुम भटकते रहे उम्र भर।
आज भटकें को राहें दिखाते हो क्यों।।
यूँ तो मदहोश नज़रों से करते रहे।
मयक़दे से हमें अब उठाते हो क्यों।।
जब अंधेरों ने हमको जकड़ ही लिया।
यूँ चिरागों को अब तुम जलाते हो क्यों।।
पाला पोसा हमें और शज़र कर दिया।
फ़ल की चाहत में पत्थर चलाते हो क्यों।।
मौत की गोद में जब सहारा मिला।
नींद से ‘कल्प’ को अब जगाते हो क्यों।।
✍ अरविंद राजपूत? ‘कल्प’