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18 Sep 2019 · 1 min read

ग़ज़ल- तीर अब बाकी नही हैं अर्जुनी तूणीर में

तीर अब बाकी नही हैं अर्जुनी तूणीर में।
धार पैनी भी नहीं अब राणा की शमशीर में।।

अब नही दीवानगी है इश्क़ की तासीर में।
रब नज़र आता नहीं अब रांझणा को हीर में।।

लुट रही अस्मत सभा में द्रोपदी की रोज ही।
क्यों पितामह मूक बैठे, खुद की ही जागीर में।।

है किसे ग़ैरों की चिंता आज के इस दौर में।
अब कसक दिखती नहीं माँ टेरसा की पीर में।।

गाय सड़कों पर फिरे, कुत्ते जो बैठे कार में।।
हंस दाना चुग रहे कौए नहाते छीर में।।

खोजता हूं दर ब दर पर तुम बसे हो रूह में ।
अब तुम्हे मैं ढूंढता हूँ अपनी ही तस्वीर में।।

चाँद तारे गुल नजारों पर लिखे नग्मे कई।
बस झलक दिखती है तेरी मेरी हर तहरीर में।।

नफ़रतों से जल गये घर, ख़ाक में सब मिल गये।
है अभी मुमताज ज़िंदा प्यार की ताम़ीर में।।

कर्म करता चल तू बंदे, फल की चाहत छोड़ दे।
‘कल्प’ वो मिलकर रहेगा जो लिखा तक़दीर में।।

अरविंद राजपूत ‘कल्प’

1 Like · 379 Views
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