ग़ज़ल- तारीफ़ करना ग़ज़लों में व्यौहार हो गया…
तारीफ़ करना ग़ज़लों में व्यौहार हो गया।
तनक़ीद करने वाला गुनहगार हो गया।।
सच बोलना पसंद किसी को नही यहाँ।
तारीफ़ झूठ-मूठ ही उपहार हो गया।।
आभासी फेसबुक पे चलन दोस्ती हुआ।
अंजान कब वो बचपने का यार हो गया।।
जो कर न पाये हिज्जे सम्मान शब्द की।
सम्मान पत्र उन गलों का हार हो गया।।
तमगे बटोर लाया वो सारे जहान से।
दीवार गिर न जाये बहुत भार हो गया।।
✍?’कल्प’ अरविंद राजपूत
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