ग़ज़ल- जैसे कोई अफसाना
ग़ज़ल- जैसे कोई अफसाना
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तुमने कब ऐसा माना था
हम दोनोँ मेँ याराना था
याद नहीँ क्या तेरे पीछे
फिरता कोई दीवाना था
अपने ही जीवन से इतनी
दूरी ये किसने जाना था
भूल गये वे कसमेँ वादे
जैसे कोई अफसाना था
लाओगे ‘आकाश’ कहाँ से
नज़रोँ पे जो नजराना था
– आकाश महेशपुरी