ग़ज़ल (जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे)
किस ज़माने की बात करते हो
रिश्तें निभाने की बात करते हो
अहसान ज़माने का है यार मुझ पर
क्यों राय भुलाने की बात करते हो
जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे
दिल में समाने की बात करते हो
तन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये
जज़्बात दबाने की बात करते हो
गर तेरा संग हो गया होता “मदन ”
जिंदगानी लुटाने की बात करते हो
ग़ज़ल (जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे)
मदन मोहन सक्सेना