ग़ज़ल- जमाना देखिये कितना बिगड़ गया साहिब
ग़ज़ल
जमाना देखिये कितना बिगड़ गया साहिब।
हमारी जान के पीछे ही पड़ गया साहिब।।
बड़े ही शौक से इक़ आशियां बनाया था।
ज़रा से शक मे ये गुलशन उजड़ गया साहिब।।
न सीख पाया लचक जिंदगी कभी तुझसे।
ये जिस्म मरते ही मेरा अकड़ गया साहिब।।
भुला दी प्रेम की खातिर बड़ी बड़ी बातें।
ज़रा सी बात पे अपनो से लड़ गया साहिब।।
बुलंद नाम हुआ बस ख़ुदा की नेमत से।
नगीना ‘कल्प’ के माथे पे जड़ गया साहिब।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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? वज़्न – 1212 1122 1212 22
?अर्कान – मुफ़ाइलु फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
? बह्र – मुज्तस मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ मक़्तूअ