ग़ज़ल- जब शेर सर्कसों में, गिरफ्तार हो गए
जब शेर सर्कसों में, गिरफ्तार हो गए।
कुत्ते गली के तब से, तो सरदार हो गए।।
जीते चुनाव जब से, वो सरकार हो गए।
मतदाता अब तो सारे, ही बेकार हो गए।।
हक़ छीन मुफ़लिसों का, मसीहा समझते हैं।
बैसाखियों पे चल के, मददगार हो गए।।
जो बात कर रहे हैं उसूलों, की बाअदब।
वो बेच कर ज़मीर, जमीदार हो गए।।
जब से शज़र जमीन, पे नाबूद हो रहे।
पर्वत, नदी ये झरने, भी लाचार हो गए।।
चाहा था उनको ‘कल्प’ ने रब की तरह सदा।
इज़हार करके हम तो, गुनहगार हो गए।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
वज़न- 221 2121 1221 212