ग़ज़ल- जन्म से मृत्यु तक, काम आते तरू
जन्म से मृत्यु तक, काम आते तरू।
दुल्हनों सा धरा को सजाते तरू।।
मूक अविचल अडिग, धूप तूफ़ा सहें।
बदले पत्थर के भी, फ़ल लुटाते तरू।।
पेड़ पौधों से सीखो ज़रा जीना तुम।
यूँ ही परहित में जीवन बिताते तरू।।
पंचतत्वों के पोषक, यही पेड़ हैं।
सन्तुलन इस धरा पे बनाते तरू।।
वायु दाता हो तुम, छाया दाता भी तुम।
भूख सारे जगत की मिटाते तरू।।
पेड़ काटो नही कोप से तुम बचो।
कम्प धरती क्षरण से बचाते तारू।।
अब कदम से कदम ‘कल्प’ मिलके चले।
हर ख़ुशी पे सभी जन लगाते तरू।।
? अरविंद राजपूत ‘कल्प’