ग़ज़ल- चाहे नज़रों से ही गिरा जाना
ग़ज़ल- चाहे नज़रों से ही गिरा जाना
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चाहे नज़रों से ही गिरा जाना
जो नज़र आऊँ यार आ जाना
तेरी नफ़रत भी बहुत प्यारी है
दिल करे तो मुझे सता जाना
है ये सूरत हमारी काँटों सी
फूल बन के इसे सजा जाना
ऐसी वैसी तो कोई बात नहीं
प्यास आँखों की है बुझा जाना
खुद को “आकाश” भूल जाता हूँ
भूलूँ कैसे तुझे बता जाना
– आकाश महेशपुरी