ग़ज़ल : चले भी आओ मेरे यार
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गज़ल
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चले भी आओ मेरे यार दिल बुलाता है
यूँ रूठकर भी भला अपना कोई जाता है//1
सज़ा भी दे दो मुझे अब मेरे गुनाहों की
उदास चेहरा तुम्हारा नहीं सुहाता है//२
उदास तुम जो हुए ज़िंदगी उदास हुई
कोई भी जश्न मुझे अब नहीं हंसाता है//३
तुम्हारे दम से ही हर सुब्ह मेरी ज़िंदा थी
हर एक शाम का मंज़र मुझे रुलाता है//४
नज़र फिराई जो तुमने वो एक लम्हे में
हर एक लम्हा ही ठोकर लगा के जाता है//५
ग़मों की भीड़ में जब भी भटक मैं जाता हूँ
तेरा वजूद ही रस्ता मुझे दिखाता है//६
क़मर उदास न हो ग़म के दिन ये थोड़े हैं
हृदय में रहता है जो लौट के वो आता है//७
— क़मर जौनपुरी