ग़ज़ल- खार है जिनकी जुबां पर हो गए गुलफाम
??
एक ग़ज़ल आपकी सलाह हेतु
ख़ार हैं जिनकी ज़ुबां पर हो गये गुलफाम वो।
सच की राहों पे चले जो, हो गये बदनाम वो।।
मयकदे के रोज़ ही चक्कर लगाकर थक गया ।
अब नश़ा उतरे नही साक़ी पिला दे जाम वो।।
कल तलक था जो हमारी महफिलों का इक दिया।
आसमाँ का है सितारा अब कहां है आम वो।
ढूढ़ता साया है क्या तपना है तुझको धूप में।
तब मिले मंजिल सुहानी, औ सुकूँ की शाम वो।।
राम-रावण याद सबको, कर्म से दोनों जुदा।
ये ज़हां भूले नहीं अब,’कल्प’ कर तू काम वो।।
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बह्रे-रमल मुसम्मन महजूफ़
अर्कान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन