ग़ज़ल;- क्या अँधेरों में हमें ऐब छुपाने होंगे…
क्या अँधेरों में हमें ऐब छुपाने होंगे।
घर की बिजली को बुझा दीप जलाने होंगे।।
ताली थाली को बजा ध्यान जगत का भटके।
अपनी नाकामी छुपाने के बहाने होंगे।।
सारी दुनिया के सभी लोग सराहें हमको।
तब दिखावे के लिये पोज खिचाने होंगे।।
ग़ैर मुल्कों को यूँ कमजोर दिखाती टीव्ही।
वाहवाही के लिये अंक छुपाने होंगे।
कुछ अमीरों के समय को ही बचने की खातिर।
हम गरीबों को कई साल चुकाने होंगे।।
क्या किया तूने बता आज तलक ये हाकिम।
पीढ़ियों को हमें इतिहास पढ़ाने होंगे।।
दौर-ए-मुश्किल में नही साथ हमारे साहिब।
अब तो उपचार घरों में ही कराने होंगें।।
अब हिफाज़त तेरी आवाम तुझे ख़ुद करना।
माह कुछ ‘कल्प’ घरों में ही बिताने होंगे।।
✍अरविंद राजपूत ‘कल्प’