ग़ज़ल/ कब मुझें आबाद करोगे
जब जब मासूमियत पे मेरी नाज़ करोगे
तुम भी मुझसे मिलने की फ़रियाद करोगे
अगर तुमको भी मुहब्बत हो जाए मुझसे
यादों में जा जाके मेरी ख़ुद को बर्बाद करोगे
मैंने लिक्खें हैं नग़में हर दिन शायरी तुझपे
पलट पलटकर सफे तुम भी मुझे याद करोगे
तुम्हारा दिल पत्थर तो नहीं हो सकता साथी
तुम कैसे मुँह मोड़ लोगे कैसे हमें आज़ाद करोगे
मैं तो चाहत में तुम्हारी इतना बर्बाद हुए बैठा हूँ
तुम कब आओगे मेरे अक्स कब मुझें आबाद करोगे
~अजय “अग्यार