ग़ज़ल ..”.. उन्ही के सामने.’..’
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खूब बातें की उन्ही से बस खुदी के सामने
बोलती बस बंद हो जाती उन्ही के सामने
रंग पीला ओढ़नी का याद आता आज भी
ज़िंदगी के रंग फीके हैं… इसी के सामने
नैन आ जाते बड़े से.. आपके शामो सहर
ख्वाब में होती यही दुनिया.. किसी के सामने
हौसला भी है बहुत बढ़तें रहें ज़ज़्बा बहुत
हार जाता हूँ हमेशा दोस्ती के सामने
कायदे कानून ये’ अरमान ये ; ख्वाहिशे इश्क़
फ़क़त बेमानी शब्द हैं .. मुफलिसी के सामने
करम माता का मिला होता अगर ‘बंटी’ सभी
हार जातीं मुश्किलें भी …..आदमी के सामने
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रजिंदर सिंह छाबड़ा