ग़ज़ल/ इनायत क़ुर्बा कीजिए
ऐ मेरे राहगुज़र मेरी मुश्किलें आसाँ कीजिए
इक नज़र तो कीजिए, मेरी जाँ को जाँ कीजिए
मैंने जला रक्खें हैं आँखों में चराग़ मुहब्बत के
ज़रा कीजिए,थोड़ी ही सही इनायत क़ुर्बा कीजिए
आ जाइए ज़िन्दगी में मेरी आहिस्ते आहिस्ते रहबर
चाहें कुछ भी इल्तिज़ा कीजिए बस अपना कीजिए
भुला दीजिए शिक़वे गिले आगाज़ ए अदा कीजिए
वही मुस्कराहटें वही चाहतें सनम दरमियाँ कीजिए
कुछ तो बाक़ी होगा अभी भी जो मयस्सर ना हुआ
मेरी आँखों में रौशनी कीजिए इस तरह सरगोशियाँ कीजिए
बड़ा सर्द है आज बाहर का मौसम हवाएँ जम गयी
मेरे तसव्वुर में आ जाके इक बार धुआँ धुआँ कीजिए
बड़ा बेताब हूँ सुनने को बहुत कुछ जो तुम कह नहीं पाती
उतार दीजिए हलक से अनकहे वो लफ्ज़ अब नुमायाँ कीजिए
~अजय “अग्यार