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19 Jun 2020 · 1 min read

ग़ज़ल आज़माइश हुई

212 212 212 212
ग़ज़ल
हर दफ़ा ही मेरी आजमाइश हुई!
सामने अपनों के ही नुमाइश हुई!!

आपकी जब से मुझ पर नवाज़िश हुई!
दर पे मेरे दुआओं की बारिश हुई!!

महफिलों मेँ कही मैंने फिर इक ग़ज़ल!
देखिये मेरी हर सूं सताइश हुई!!

मेरे हालात भी बद से बदतर हुए!
दुश्मनों में मेरे कैसी साज़िश हुई!!

कामयाबी मिली नाम भी हो गया!
मेरी जानिब ये उनकी सिफ़ारिश हुई!!

जब क़रम मुझ पे तेरा ख़ुदाया हुआ!
मेरे मौला हरिक पूरी ख़्वाहिश हुई!!

सताइश =प्रशंसा
आभा सक्सेना दूनवी

4 Likes · 3 Comments · 696 Views

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