ग़ज़ल:- आदमी को आदमी अब कहाँ नज़र आता है।
दोस्तों,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों की नज़र
मुलाहिज़ा फरमाऐं!!!!!
ग़ज़ल
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आदमी को आदमी अब कहाँ नज़र आता है,
लगता है शायद शोहरत का ये असर आता है।
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बदले मिज़ाज आदमी का, मौसम की तरहा,
उजड़ जाऐ जिंदगी जीवन मे वो अगर आता है।
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मरना है सभी को इक दिन आया जो जहां मे,
कौन शख़्स है जीवन मे होकर अमर आता है।
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मिलती है खुशियां अपार जिनको जिंदगी मे,
फितरत आदमी की उसे कहां सबर आता है।
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सच कितना भी दिखाऐं हम चाहे किसी को,
आदमी है कि उसको सब, भ्रम नज़र आता है।
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किस पर ऐतबार करे कोई अब यहां “जैदि”,
यहां हर शख़्स मे, फ्रेब दिखाई मगर आता है।
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शायर-“जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”