ग़ज़ल:- आज उनसे मेरी गुफ्तगू हो गई
आज उनसे मेरी गुफ्त़गू हो गई।।
पूरी जन्मों की अब जुस्तजू हो गई।।
पास अपने मुझे पाके कहने लगी।
आज पूरी मेरी आरज़ू हो गई।।
मैंने कौयल को जब गुनगुनाते सुना।
इश्क़ में मैं तेरे रंग-ओ-बू हो गई।
इश्क़ काज़ल की कोठी मेरा बन गया।
दाग़दा अब मेरी आब़रू हो गई।।
मेरे साये में आके कलंकित हुई।
दाग़ लेकर मेरा माहरू हो गई।।
जब मिली वो मुझे नाती पोतों के संग।
इस बुढ़ापे में भी खूब़रू हो गई।।
‘कल्प’ की कल्पना तब हक़ीक़त हुई।
दिल से मुझको लगा रूब़रू हो गई।।