ग़ज़ल- आईना हमको बना रक्खा है
आईना हमको बना रक्खा है।
रूप सुंदर सा सज़ा रक्खा है।।
दिल कहे यार ग़ज़ल अब कैसे।
काफ़िया तंग बना रक्खा है।।
मुफलिसी उनको दिखेगी कैसे।
जाविया ऐसा बना रक्खा है।।
अब वतन में अमन हो कैसे।
पाठ नफ़रत का पढ़ा रक्खा है।।
रोशनी होगी तेरे घर में भी।
प्यार का दीप जला रक्खा है।।
हर मुसाफ़िर को मिले छाया अब।
‘कल्प’ अभियान चला रक्खा है।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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