ग़ज़ल- अब तो तेरे बगैर…
ग़ज़ल- अब तो तेरे बगैर…
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अब तो तेरे बग़ैर जीने से,
पल भी लगने लगे महीने से।
क्यों गरीबों से ही लिपटता है,
आओ पूछें ज़रा पसीने से।
शब्द के ज़ाम क्या नशीले हैं?
मैं तो पागल हुआ हूँ पीने से।
बोल देगी ये जैसे मूरत भी,
यूँ सजाया इसे क़रीने से।
मिट्टी जीवन ‘आकाश’ देती है,
इसको बदलो नहीं नगीने से।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 25/06/2019