ग़ज़ल- अब की होली में
मुझे मिला सभी का प्यार अबकी होली में।
खिज़ां में आ गई बहार अबकी होली में।।
चढ़ा है भाँग का खुमार अबकी होली में।
नशा हुआ है बेशुमार अबकी होली में।।
किया बहुत है मैने प्यार यार तुमसे ही।
करूँ मैं तुम पे ज़ाँ निसार अबकी होली में।
शिकायतें रहें न अब मलाल दिल मे हो।
बुरा न मानो मेरे यार अबकी होली में। ।
थी हसरतें तेरी गालों को मेरे छूने की।
निकालो रंग से गुबार अबकी होली में।।
जो अंग अंग में लगाया रंग मैने यूँ।
चढ़ा है हुस्न पे निखार अबकी होली में।।
अकेले कट सकेगी अब न जिंदगी तेरी।
मेरे भी संग कर बिहार अबकी होली में।।
करो न ‘कल्प’ शिकवा औ गिला सब अपने हैं।
करो न दुश्मनी शुमार अबकी होली में।।
✍?? अरविंद राजपूत ‘कल्प’ ?✍?
बह्र- हज़ज मुसम्मन मकबूज महजूफ़
अरकान- मफ़ाएलुन मफ़ाएलुन मफ़ाएलुन फ़अल