ग़ज़ल – अपनी यादों में मुब्तिला कीजे
इस तरह हमको जा ब जा कीजे
अपनी यादों में मुब्तिला कीजे ||
सब ही मतलब के यार हैं जानाँ
कोई अपना नहीं है क्या कीजे।।
अहले- इश्कां की शर्त ऐसी है
अपनी सूरत को चाँद सा कीजे।।
फ़ोन पर बात ख़ूब कर ली है
अब तो मिलने का हौसला कीजे।।
कोई तो हल ज़रूर निकलेगा
तल्ख़ मौज़ू पे मशविरा कीजे
जिंदगी कहते इक तमाशा है
अपना किरदार बस अदा कीजे ||
हमने बस इक उमीद बाँधी है
कम से कम आप कुछ नया कीजे
मिलके हिज्रो-विसाल सहना है
हमसफ़र अपना हमनवा कीजे
अपना मफहूम आपको दूंगा
आप बस शेर कह दिया कीजे |
नज़ीर नज़र