ग़ज़ल।लगा है दाग़ दामन में दिखाई तो नही देता ।
गज़ल। लगा है दाग़ दामन में दिखाई तो नही देता ।।
यहा इंसान है कातिल वफ़ाई तो नही देता ।
लगा है दाग़ दामन में दिखाई तो नही देता ।।
भरोसा हो गया देख़ो उसे अब बेहयायी पर ।
किये खुद के गुनाहों की सफ़ाई तो नही देता ।
लगी पाबंदियां क्यों है ज़बाने की मुहब्बत पर ।
ग़मो में दर्द की अक़्सर दवाई तो नही देता ।।
रूहानी प्यार की चींखे उसने भी सुनी होंगी ।
पड़ा ख़ामोस, है तन्हा ,सुनाई तो नही देता ।।
लुटेरे कर रहे होते यहा जुल्मों की पैमाइस ।
अमन की चाह में बेशक़ गवाही तो नही देता ।।
वहसी है ,दरिन्दा है ,खुदा की भी नही चिंता ।
वफ़ा ऐ जख़्म के बदले दुहाई तो नही देता ।।
बने नासूर है ‘रकमिश’ज़ख्मो का जुनूं पाकर ।
आदत हो गयी अब तो दुखाई तो नही देता ।।
©राम केश मिश्र’रकमिश’