ग़ज़ल।मुहब्बत जब नजऱ आती ।
ग़ज़ल।। मुहब्बत जब नज़र आती ।।
गवाही बेवज़ह निकली जमानत जब नजर आती ।
वफ़ाई की तमन्ना क्यों मुहब्बत जब नज़र आती ।।
गुरु है वो , खुदा , रहबर , ईश्वर है , मसीहा है ।
मिला सबको यहीनन तू जरूरत जब नजर आती ।।
न मंदिर में न मस्जिद में न गिरजाघर न गुरुद्वारा ।
दिलों में झांककर देखा वो सूरत जब नजर आती ।।
न माने वो तो मत माने मग़र है मानना उनको ।
झुके वो शर्म के मारे हुकूमत जब नज़र आती ।।
रहे हो ख़ोज क्या भटका ,खोया वो ज़बाने में ।
ज़र्रे ज़र्रे में हाज़िर वो मुहूरत जब नज़र आती ।।
बनो इंसान तू ‘रकमिश’ वही रब की इबादत है ।
तभी दीदार ए रब होगा ईमानत जब नज़र आती ।।
©राम केश मिश्र