ग़ज़ल।एक दिन अपने घरौंदे को शहर कर देखिये ।
—————–ग़ज़ल—————-
राहे रंजिश छोड़ दिल का घर बसर कर देखिए ।
सुर्ख़ होठों पर किसी के तो फिसलकर देखिए ।
ख़ुद व ख़ुद मिट जाएगी ऐ दोस्त ये दुश्वारियाँ ।
एक दिन अपने घरौंदे को शहर कर देखिए ।
हुश्न की ख़ुशबू यक़ीनन छा तेरे घर जाएगी ।
आह मे तप शुष्क पत्ते सा बिखरकर देखिए ।
मौत का क्या मौत तो आएगी सबको एक दिन ।
जिंदगी रहते हुए ख़ुद से सम्हलकर देखिए ।
मोतियों की चाह रखते हो किनारे बैठ क्यों ?
साहिलों को छोड़ दरिया मे उतरकर देखिए ।
हौसला रख फूल बन जाएंगे काटें एक दिन ।
राह कितनी हो कठिन मसलन गुजरकर देखिए ।
आइना भीगा मग़र सूखी रही तस्वीर तो ।
एक दिन आग़ोश मे आँसू बदलकर देखिए ।
है बहुत आसान’ रकमिश’ इश्क़ मे दम तोड़ना ।
शख़्त पत्थर, मोम सा लेक़िन पिघलकर देखिए ।
✍रकमिश सुल्तानपुरी