ग़ज़ल।इश्क़ की आंधियों मे उड़ा ले गयी ।
================ग़ज़ल=================
इश्क़ की आंधियां मे उड़ा ले गयी ।
जिश्म को लूटकर बेवफ़ा ले गयी ।
रंग भी न रहा फूलों के पास अब ।
ख़ुशबुओं को उड़ाकर हवा ले गयी ।
आह भरता रहा रोज़ जिसके लिए ।
रूठ वो आशिक़ी की दवा ले गयी ।
बनके आंधी कोई साहिलों पर चली ।
तैरती किस्तीयों को बहा ले गयी ।
छोड़कर ग़म भरे साहिलों पर मुझे ।
बावफ़ा आँख का आइना ले गयी ।
अब रदीफों के दम चल रही जिंदगी ।
बनके मतला मेरा क़ाफ़िया ले गयी ।
प्यार रकमिश मेरा था जुनूनों के दम ।
आशिक़ी का मेरे फ़ायदा ले गयी ।
✍रकमिश सुल्तानपुरी