ग़ज़ल।अब मेरी तस्वीर को यूं पा रहे पहचान कितने ।
================ग़ज़ल=================
बह गए आंखों से आंसू छल गए अरमान कितने ।
दिल्लगी मे आशियानें हो गए वीरान कितने ।
आशिक़ी मे मंजिलों का है पता कुछ भी नही पर ।
रास्तों पर चल रहे फ़िर भी यहाँ सुनसान कितने ।
क्या बताये घर हमारे तुम कभी आते नही हो ।
बस्तियों मे ढह गए वो राजसी मक़ान कितने ।
ज़लज़लों को देखने कुछ काफ़िलें आने लगे है ।
एक तुम आये नही पर आ गये अनजान कितने ।
भूलने की एक कोशिश कर सको तो देख लो ।
अब ख़ुदाई याद करने को बचे इंसान कितने ।
कल तलक तुमने दिया था हौसला इस प्यार को ।
आज भी दिल पर मेरे हैं आपके एहसान कितने ।
गर्दिशों मे दर्द बरपी आँच ‘रकमिश’ लग गयी है ।
अब मेरी तस्वीर को यूँ पा रहे पहचान कितने ।
✍रकमिश सुल्तानपुरी