ग़ज़ल/गीतिका
एक ग़ज़ल
आई जब तू जिन्दगी हँसने लगी
तू मेरे हर सपने में रहने लगी |
धीरे धीरे तेरी चाहत बढ़ गई
देखा तू भी प्रेम में झुकने लगी |
जिन्दगी का रंग परिवर्तन हुआ
प्रेम धारा जान में बहने लगी |
राह चलते हम गए मंजिल दिखा
फिर भी जीना जिन्दगी गिनने लगी |
देखिये शादी के इस बाज़ार में
हाट में दुल्हन यहाँ बिकने लगी |
शमअ बिन यह तम डराने जब लगा
जिन्दगी को जिन्दगी छलने लगी |
दीप का लौ झिलमिलाते ही रहे
जब इक आँधी तेजी से बहने लगी |
कालीपद ‘प्रसाद’