ग़ज़ल/गीतिका
मापनी : १२२२ १२२२ १२२२ काफिया : आना , रदीफ़: है
उमंगों की तरंगे यूँ छुपाना है
विरह में गीत यूँ अब गुन गुनाना है |
ये↓ लहरे तो उठेगी फिर मिटेगी यूँ
दिवाकर को तो↓ उग कर अस्त होना है |
मिरे दिल के सभी धड़कन सुनोगी क्या
किया है प्यार तो उसको निभाना है |
लहर को छोड़ कर अब तेरे↓ नयनों के
प्रणय के सिन्धु में अब डूब जाना है |
मैं कब तक राह में यूँ बैठ कर देखूं
लहर आती है↓ पर तुझ को न आना है |
© कालीपद ‘प्रसाद’