ग़ज़ल- आज बैठा हूँ मैं वीराने में
ग़ज़ल- आज बैठा हूँ मैं वीराने में
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आज बैठा हूँ मैं वीराने में
सबको खोया है आजमाने में
कैसे कैसे सवाल करता है
जैसे बैठा हूँ उसके थाने में
साथ मेरे कलम न होती तो
वक्त कटता ये सर झुकाने में
माँगे मोटा वो हार सोने का
मैं तो पतला हुआ कमाने में
यूँ ना ‘आकाश’ ग़मज़दा होना
कौन दुखिया नहीं ज़माने में
– आकाश महेशपुरी