ग़ुरूर
वह आदमी जो मुस्कुरा रहा है,
किसलिए मेरे घर से जा रहा है,
अभी तो सूरज नहीं था निकला,
तूँ जुगनू फिर क्यों बुझा रहा है,
हुयी बारिशों से कमजोर छप्पर,
टपकती बूंदें मैं लाचार अक्सर,
जिनके भरोसे मुल्क की इज्ज़त,
तूँ उन्हीं की इज्जत घटा रहा है,
अभी तो सूरज नहीं था निकला,
तूँ जुगनू फिर क्यों बुझा रहा है,
हमारी वस्ल से रौनक जहां है,
जहां मिली हमें तनिक न रौनक,
उसी जहां में हमें सब जहां से,
तूँ इस क़दर जो मिटा रहा है,
अभी तो सूरज नहीं था निकला,
तूँ जुगनू फिर क्यों बुझा रहा है,