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1 Jun 2017 · 1 min read

ग़ालिब का दीवान

रहा भूख औ प्यास का,मुझे कहाँ फिर ध्यान !
आया हाथों में जहाँ, ….ग़ालिब का दीवान ! !

आखिर जब वह प्यार का, कर ना सका हिसाब !
छोड़ गया वह मेज पर, …कोरी खुली किताब !!

हो जाते हैं आप ही,..दिल मे कई सुराख !
चली गई इक बार जो,.बनी बनाई साख !!
रमेश शर्मा.

Language: Hindi
1 Like · 364 Views
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