तुझसे प्यार करना गुनाह क्यूँ हुआ
ग़र महकना फूलों का अदा है जनाब ,
उसपे मेरा बहकना गुनाह क्यूँ हुआ ।
चहचहाना जो होती पंछी की अदा,
उसपे मेरा चहकना गुनाह क्यूँ हुआ॥
ग़र महकना …
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वैसे घर में मेरे कोई खिड़की नहीं,
उसपे फाटक को भी बंद रखता हूँ मैं।
रोशनदानी से फ़िर भी जो झाँके किरन,
उसमें मेरा नहाना गुनाह क्यूँ हुआ॥
ग़र महकना …
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लाख पर्दों में रखता हूँ खुदको मगर,
चाहता हूँ पड़े ना किसी की नज़र।
बैरी शीतल हवा जो लगाए अगन,
उसमें मेरा झुलसना गुनाह क्यूँ हुआ॥
ग़र महकना …
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माना चाहत की मुझको इजाज़त नहीं,
इश्क़ काफ़िर है कोई ईबादत नहीं।
हुस्न के साये में दिख जो जाए खुदा,
सजदे सर का झुकना गुनाह क्यूँ हुआ॥
ग़र महकना …
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कोई कलियों का मारा मैं भंवरा नहीं,
नज़र-ए-आशियाना में संवरा नहीं।
राह दलदल सा निर्जन हो कोहरा घना,
तो मेरा डूब जाना गुनाह क्यूँ हुआ॥
ग़र महकना …
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रात फूलों सी रिमझिम सुहानी नहीं,
तपती गर्मी है दिन भी रेतीली सही।
ओस की बूंदें मोती पिरोएं अगर,
उसमें मेरा संवरना गुनाह क्यूँ हुआ॥
ग़र महकना …
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ना ही मोदक ना मदिरा बहारों में है,
जो नशा ख़ूबसूरत नज़ारों में है।
कोई दिलकश शमा गुदगुदा जाए मन,
तो मेरा लड़खड़ाना गुनाह क्यूँ हुआ॥
ग़र महकना …
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✍️✍️✍️✍️✍️ by :
? Mahesh Ojha
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