“ग़र तुम बन जाते मेरे संसार”–कविता प्रेम गुहार
बैठा हूँ पथ में ताक लगाए
मिलन को नैना बरसी जाए
बन्द होती आँसू की बौछार
ग़र तुम बन जाते मेरे संसार….
सांस मेरी अब जमती जाए
ये सब्र की आह बढ़ती जाए
कभी पूरी होती मेरी भी गुहार
ग़र तुम बन जाते मेरे संसार…..
जाने कितने सावन बीत चुके
जाने कितने पावन बीत चुके
जीवन में आ जाती मेरे बहार
ग़र तुम बन जाते मेरे संसार…..
ये पलकें मेरी हैं भीगीभागी
बन बैठा मैं तेरा ही अनुरागी
नौका लग जाती मेरी उस पार
ग़र तुम बन जाते मेरे संसार…..
करुणा की बानी किससे कहूँ
ह्रदय की बानी मैं किससे कहूँ
गीत गूँजते औऱ बजता सितार
ग़र तुम बन जाते मेरे संसार……
मेरे होंठ नयन सब प्यासे भूखे
जैसा बारिश बिना मेघ हों सूखे
मिल जाती इन्हें भी एक फ़ुहार
ग़र तुम बन जाते मेरे संसार…..
____अजय “अग्यार