ग़म ज़माने से छुपाना आ गया
रफ़्ता-रफ़्ता मुस्कुराना आ गया
ग़म ज़माने से छुपाना आ गया
मुस्कुराकर यूँ लजाना आ गया
देखकर पलकें झुकाना आ गया
आँख में उम्मीद आती है नज़र
ख़्वाब आँखों में सजाना आ गया
दूर हो नज़दीक कब तक आओगे
प्यार का मौसम सुहाना आ गया
बन्द आँखों से यकीं करता था जो
आज उसको आज़माना आ गया
ज़िक्र उसने ही किया था याद है
याद क़ातिल का फ़साना आ गया
मस्तियाँ बच्चों की देखीं आज फिर
याद बचपन का ज़माना आ गया
बज़्म में चर्चा हुआ था देर तक
शह् र में किसका दिवाना आ गया
ये अदा ‘आनन्द’ की देखी अभी
नेकियाँ कर के भुलाना आ गया
– डॉ आनन्द किशोर