((())) ग़मों के डेरे ((()))
घर के आगे मेरे भी ग़मो नेडेरे बहुत लगाए हैं।
तुम्हारी ही तरह हमे भी कभी अपनों ने सताए हैं
कभी ग़ैरों ने सताए हैं।
इम्तिहान तो हम भी बचपन से देते आ रहे हैं,
बस किसी मे पीछे किसी मेअव्वल आए हैं।
पर नही की शिकायत हमने कभी किसी से
चाहत बहुत कि की पर मिला कम ही ज़िन्दगी से।
तुम पर ये जो आया है जलजला वो देन ए कुदरत है,
संभाल लो इसे भी इसमें भी कुछ न कुछ बरकत है।
है ये भी तुम्हारी खुशियों के दिन का एक इशारा,
जो आज तो मझधार है पर एक दिन बनेगा किनारा।