ग़मे ज़िंदगी
जब मैं खुशी खोजने बाहर निकला ,
तब इस शहर में हर शख़्स को ग़मज़दा पाया ,
किसी को अपने अज़ीज़ों को खोने का ग़म ,
किसी को अपनी कोशिशों में नाक़ाम होने का ग़म,
किसी को अपनी बीमार गिरती सेहत का ग़म ,
किसी को मुँह फेर जाती अपनों की नज़रों का ग़म ,
किसी को अपनी तन्हाईयों का ग़म ,
किसी को इश्क़ में रुस़वाईयों का ग़म ,
किसी को अपनों पर एतमाद खोने का ग़म ,
किसी को अपने सितारे गर्दिश में होने का ग़म ,
किसी को ज़िंदगी में अपनी मुफ़लिसी का ग़म ,
किसी को जिंदगी में अपनी ब़दकिस्म़ती का ग़म ,
मैंने पाया हर शख़्स यहां ग़म में डूबा हुआ है।
इस ग़मे ज़िंदगी में हर शख़्स़ का ग़म जुदा-जुदा है।