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चल रही हैं हवा आपके शहर में,
उठ रहा है धुँआ आपके शहर में।
छू गई है हया शबनमी बूंद को,
गिर रही है खिज़ा आपके शहर में।
चाँदनी जा रही चाँद को देखने,
हो रही है निशा आपके शहर में।
चुप रहे कब तलक हँस पड़े है सभी,
राज है कुछ छिपा आपके शहर में।
धड़कने है गवाह मिलने की उम्रभर,
चल दिये हम खुला आपके शहर में।
उठ गया ‘मैं’ अभी मुस्कुराते हुये,
शोर है क्यों मचा आपके शहर में।
Rishikant Rao Shikhare
29-06-2019