ग़जल
ग़ज़ल
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
आइना क्या देखकर शरमा रहा है।
यूँ मिली जब आंख तो घबरा रहा है।
बंद पलकों से कहो ना दर्द कुछ भी,
दिल अभी नादान हँसा जा रहा है।
खनखनाकर शोर उठती चूड़ियों की,
क्या शिकायत मुझको बतला रहा है।
आज से पहले नही इतना हँसा वो
राज कुछ है साज जो छिपा रहा है।
ये अँधेरे ढूँढ ही लेते हैं ‘मुझको’,
रौशनी जो आंख में जलता रहा है।
Rishikant Rao Shikhare