ग़जल
ग़जल
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
आप हमसे यूँ अदावत अब न करना।
रूठना लेकिन बगावत अब न करना।
दोस्त मिलते हैं बड़े ही मुश्किलों से,
दोस्त बनकर तुम सियासत अब न करना।
वो न जिंदा रात भर भी रह सकेगा,
चंद साँसों की तिज़ारत अब न करना।
हार मिल जाये हमें गम हैं न कोई,
यार झूठों का वक़ालत अब न करना।
हम न रह पायें कभी भी रात तन्हा,
छोड़ जाने की हिमाक़त अब न करना।
याद आयी रात भर जिसकी वजह से,
दर्द के ख़त की हिफाज़त अब न करना।
आग मुझमें भी बराबर सी लगी है,
यूँ बढ़ाने की शरारत अब न करना।
जो बयां कर ना सके हम दर्द अपना,
इस कदर सुनने कि आदत अब न करना।
अदावत- शत्रुता; तिज़ारत- व्यापार; हिमाक़त- बेवकूफ़ी, मूर्खता; हिफाज़त- देखभाल, रक्षा।
Rishikant Rao Shikhare
Ambedkar Nagar, Uttar Pradesh.