-:{ ख़्वाब तोड़ दिया }:-
अभी तो बचपन भी ठीक से आया नही मुझे ,
क्यों पॉव में घुघरू बांध , पायल तोड़ दिया ,
देखा था जाने कैसे कैसे हसीन ख़्वाब मैंने ,
कोठे के रंगीनियों ने सारे ख़्वाब तोड़ दिया ,,
कहाँ बन पाया था अभी शरीर मेरा ,
किसी ने हवस की खातिर , कौमार्य तोड़ दिया ,
लगती थी बोली यहाँ रोज़ मंडी के जैसे ,
मैं भी इंसान हूँ ,इसका भ्रम भी तोड़ दिया ,
रोती – सिसकती जाने कितनी ज़िन्दगी है यहाँ ,
चंद रुपये के लिए , इंसानियत ने दम तोड़ दिया ,
आंखे भी पथरा गई और दिल भी सहम जाता हैं ,
अपनो के इन्तेज़ार में , आस ने भी उम्मीद तोड़ दिया ,
कैसा प्यार , कैसा शादी ..अब ये सिर्फ कहानी है ,
हर घंटे सज़ती सेज मेरी ,, पत्नी बनने का हक़ तोड़ दिया,
वैश्या , बाजारू जाने कितने ही नाम मिले मुझे ,
इस कोठे ने मेरा , पापा के नाम से नाता तोड़ दिया ,
अब कहा वो लालिमा रही , न यौवन का सौंदर्य ,
बढ़ती उम्र ने मेरा , जवानी से नाता तोड़ दिया ,
ये ज़िस्म का कारोबार हैं ,,ज़िस्म की बोली लगती है ,
कहा कोई सारी उम्र चाहेगा, ज़िस्म ढला तो चाहत ने दम तोड़ दिया,