ख़ून इंसानियत का
ख़ून इंसानियत का
कोरोना का क़हर प्रतिदिन बढ़ रहा था। इधर लॉकडॉन की अवधि भी बढ़ती जा रही थी। न्यूज़ चैनलों पर कोरोना की संवेदनशील डरावनी खबरें हर दिन लगातार आ रही थी। फिर लॉकडॉन के नियमों का पालन नहीं करनेवालों की भी खबरें चैनलवाले अपने हिसाब से दिखा रहे थें। मानों उन में टी आर पी पाने की होड़ लगी थी। ऐसी खबरें देख कर लगता था कि कोरोना से कहीं ज़्यादा साम्प्रदायिकता इंसानों के लिए घातक है। यहाँ तक के सोशल मीडिया पर भी कई झूठी खबरें आपसी सद्भाव का गला घोंटे जा रही थी। कई समाज और मुहल्ले का माहौल बद से बदतर हो गया था। खबरों को देख कर लोग एक दूसरे सम्प्रदाय को ही इस संक्रमण का जिम्मेदार ठहरा रहे थे।
इसी लॉकडॉन के हालात में हामिद ठेले पे सब्ज़ियाँ बेचने जाता था… एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले। हमेशा अच्छा खासा कमा लेता पर ऐसी विषम परिस्थिति में जब नाम और संप्रदाय देख कर सब्ज़ियाँ ख़रीदी जाती थी तो उसकी सब्ज़ियाँ नहीं के बराबर बिकती।
एक दिन हामिद हमेशा की तरह सब्ज़ियाँ बेचने बगल के मुहल्ले में गया। हरि हामिद से ही सब्ज़ियाँ लेता था। हमेशा की तरह उस दिन भी वह हामिद सब्जीवाले का रस्ता देख रहा था। जब हामिद वहाँ पहुँचा तो हरि टोकड़ी ले कर सब्ज़ी लेने उसके पास पहुँचा। फिर उसकी पत्नी लपकते हुए उस से टोकड़ी छीन कर बोली…’ मैं हमेशा कहती हूँ इस हामिद से सब्ज़ियाँ मत खरीदा करो। खबरें देखे नहीं? पता नहीं ये संक्रमित हो।” मुहल्ले वाले ने भी उसे हामिद से सब्जी लेने से मना कर दिया और हामिद से तर्क हो गयी। फिर मुहल्ले वालों ने हामिद को धमका कर खदेड़ डाला और उस मुहल्ले में कभी नहीं आने की चेतावनी दी। उधर हरि के बातों को न तो उसकी पत्नी और न ही मुहल्लेवाले तरजीह दे रहे थे। वो बेबस हो कसक कर रह गया। हामिद का फिर उस दिन के बाद कोई पता नहीं चला।
एक दिन रास्ते में हरि अपनी मोटर सायकिल से कहीं जा रहा था। अचानक सिग्नल पोस्ट पे उसकी दुर्घटना हो गई। वह बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया। इस दुर्घटना में उसके शरीर से काफ़ी ख़ून निकल चुका था। उसे अच्छा खासा ख़ून की ज़रूरत थी। चिंतित हो उसकी पत्नी अपने सगे संबंधियों और मुहल्लेवालों से बिनती की कि कोई नेक बंदा ख़ून दे कर हरि की जान बचा ले। पर कोरोना संक्रमण के भय से कोई भी आगे नहीं आया।
हामिद के कानों में किसी तरह हरि की दुर्घटना की बात पहुँच गयी। हामिद रोज़े में था फिर भी उसी हालत में दौड़ते हुए हस्पताल पहुँचा और एक यूनिवर्सल डोनर होने के कारण वह अपना ख़ून देने को तैयार हो गया। वह सोचा इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। अपने रोज़े की परवाह तक न की और फ़ौरन उसे तोड़ दिया और अपना ख़ून दे डाला। फिर हामिद नमाज़ अदा करने मस्जिद निकल गया। कुछ घंटों के बाद हरि की आँखें खुली। उसे जब सब माज़रा पता चला तो वह चौंक गया। उधर हरि की पत्नी अपने पति से ही आँखें मिला नहीं पा रही थी तो हामिद से कैसे मिलाती? फिर एक बार इंसानियत सम्प्रदाय और मज़हब को उसकी औक़ात दिखा दिया। इंसानियत वहाँ खड़ी खुल कर मुस्कुराने लगी।
… मो• एहतेशाम अहमद
अण्डाल, पश्चिम बंगाल