ख़ुशी दिल की यूँ दर बदर हो गई
ख़ुशी दिल की यूँ दर बदर हो गई
चुभन दिल की अब हमसफ़र हो गई
अभी उनके आने की उम्मीद है
भले सुब्ह से दोपहर हो गई
वो आए न बैठे मिले चल दिये
मुलाकात यूँ मुख़्तसर हो गई
यहाँ से कहाँ जाएँ अब हम सनम
तुम्हारी गली में बसर हो गई
चलो इस तरह रात गुज़री मगर
कहानी थी बाक़ी सहर हो गई
जो देखा मुझे होश लौटा मेरा
नज़र की दवा कारगर हो गई
जो सुन्दर था आंगन बुरा हो गया
ये दीवार जब से इधर हो गई
बता दे करेगा तू ‘आनन्द’ क्या
कोई मुझ से ग़लती अगर हो गई
– डॉ आनन्द किशोर