ख़ुदी को प्यार मे झोंका नही था ।
ग़ज़ल ख़ुदी को प्यार मे झोंका नही था ।
ख़ुदी को प्यार मे झोंका नही था ।
सही है जख़्म भी खाया नही था ।।
इरादे आपके बेशक़ सही थे ।
मुझे ही इश्क़ कुछ आया नही था ।।
उनींदी आज भी आँखे हमारी ।
यक़ीनन रात भर सोया नही था ।।
शिकायत है नही दिल को किसी से ।
ज़रूरत थी कोई धोख़ा नही था ।।
मुझे मालूम थी वो बेवफ़ाई ।
तभी तो आज तक रोका नही था ।।
बढ़ा दी ख़ंजरों की धार तुमने ।
सलामत बच सकू मौक़ा नही था ।।
शहादत माँगता है इश्क़ ‘रकमिश’ ।
यही तो आज तक सोचा नही था ।।
@राम केश मिश्र
सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश